भगवान विष्णु के अवतार गौतम बुद्ध, बुद्धम शरणम गच्छामि
हिन्दू धर्म में बुद्ध को
भगवान् विष्णु का ९ वा अवतार माना है , हालाँकि बौद्ध धर्म यह नहीं मानता। बौद्ध धर्म परमात्मा में नहीं बल्कि आत्मानुभूति
को बल देता है. पुराणों में वर्णित बुद्ध और बौद्ध धर्म के बुद्ध में कोई अंतर नहीं
है यहाँ भ्रान्ति है जो फैलाई गई है. बौद्ध अवतार कलयुग के प्रथम चरण में हुआ था, तब
कर्मकांड बढ़ गए थे और तप काम हो गया था. भौतिक
सुख को प्राप्त करना लक्ष्य बन चूका था, कामनायें बढ़ने लगी थी, चूँकि सनातन धर्म में
जीवन को चार आश्रमों में बांटा है ब्रह्मचर्य,
गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास। वानप्रस्थ और सन्यास वो चरण जहाँ इंसान स्व को
या आत्मानुभूति को प्राप्त करने की या जानने की कोशिश करता है. सांसारिक कामनाओं में
वो खोने लगी.
दैत्य और देवता कुछ नहीं
मनुष्य के अंतर्मन के २ हिस्से है. जब सांसारिक कामनायें प्रबल होती है तो वो दैत्य
बनती है, दैत्य यानि विशाल जिसका कोई अंत नहीं, कामनाओं का भी कोई अंत नहीं जहाँ त्याग नहीं बस पाना ही पाना है, और देवत्व का मतलब है देना, दान करना, त्याग करना।
पुराणों कलियुग के की शुरुआत
में जब दैत्यों ने देवराज इंद्र से पूछा हमारा साम्राज्य स्थिर कैसे रहे, देवराज ने
शुद्ध भाव से कहा त्याग से, बलिदान से. दैत्यों ने उल्टा समझा, और यज्ञों में, पूजा
पाठ में बलि की शुरुआत हुई, अनाचार बढ़ने लगा. अपनी शक्ति बढ़ने के लिए महायज्ञ होने
लगे जिन्हे वैदिक आचरण के नाम पर प्रचारित किया जाने लगा. परन्तु वे वेद विहित नहीं
थे.
उस समय देवता श्री हरी के
पास गए, उन्होंने संसार के हित के लिए बुद्ध अवतार लिया। यज्ञों में जिव हिंसा बंद
की. उन्होंने कर्मकांड की जगह ध्यान को दी, आत्मानुभूति का मार्ग बताया। ज्ञान का मार्ग
बताया। शांति को पाना सिखाया। उन्होंने बतया भौतिक कामनाओं को पाने की अपेक्षा खुद
को पाओ, सत्य कहीं और नहीं तुम्हारे अंदर है, सत्य को खोजो। सेवा से, ध्यान से.
बुद्धम शरणम गच्छामि
||
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें